राष्ट्रीय
गुजरात की फैक्ट्रियों में 70 लाख मजदूरों ने यूपी-बिहार के,पलायन से उत्पादन में भारी गिरावट

गुजरात । में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने राज्य में बिहार और यूपी के लोगों की सुरक्षा को लेकर अपने एक भाषण में कहा था कि जब कोई बेटी पटना (बिहार की राजधानी) से किसी ट्रेन में बैठती है तो उसकी मां कहती है कि कहां हो, अगर वो कहती है कि वह गुजरात में है तो उसकी मां चिंतामुक्त हो जाती है कि अब मेरी बेटी सुरक्षित है। लेकिन आज वही बिहार और यूपी के लोग गुजरात में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वहां से जबरन उत्तर भारतीयों को भगाया जा रहा है, उनपर हमले हो रहे हैं, उनके साथ मारपीट की जा रही है।
आमतौर पर गुजरातियों को अपने काम से काम रखने के लिए जाना जाता है। वो झगड़ों और फसादों से दूर ही रहना पसंद करते हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से राज्य में जो स्थिति पैदा हुई है, उसने एक अलग ही माहौल बना दिया है और गुजरातियों की एक अलग छवि पेश की है।
साणंद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत शाह के मुताबिक, साणंद में यूपी और बिहार के 12,000 से ज्यादा मजदूर उत्तर गुजरात में फैक्ट्रियों में काम करते हैं, लेकिन हमले के डर से वह सभी अपने गृह राज्य वापस चले गए हैं।
उद्योग विशेषज्ञों की मानें तो गुजरात में 1 करोड़ से ज्यादा लोग फैक्ट्रियों में काम करते हैं और उनमें से 70 फीसदी यानी 70 लाख लोग गैर-गुजराती हैं और ये सभी हिंदी भाषी क्षेत्रों जैसे यूपी और बिहार से आते हैं। उद्योग के हितधारकों का कहना है कि श्रमिकों की अचानक अनुपस्थिति ने समूचे औद्योगिक गतिविधि और उत्पादनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
साणंद में स्थित औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। पिछले दशक में साणंद ने 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है और यही वजह है कि अलग-अलग राज्यों से मजदूर आकर यहां काम कर रहे हैं। लेकिन हमलों के डर से पिछले 3-4 दिनों में करीब 4,000 प्रवासी मजदूर अपने-अपने राज्यों को पलायन कर चुके हैं।
साणंद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सदस्यों ने बताया कि गुजरात में बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों के पलायन से उत्पादन में 25 फीसदी की गिरावट आई है। प्रवासी श्रमिकों के पलायन का सबसे ज्यादा असर मध्यम और छोटे उद्योगों पर पड़ा है, क्योंकि इनके स्वचालित मशीनों की व्यवस्था नहीं है। यह उद्योग पूरी तरह से श्रमिकों पर ही आश्रित हैं।
